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क्या खा रहे हैं आप?

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आइशा अय्यूब का शेर है-

तुम्हें मालूम भी है कि वो नीयत को परखता है
ये किस लालच में करते हो, ये सजदा किस तरह का है

हाल ही में कानपुर के एक मशहूर बिरयानी वाले के कई प्रतिष्ठान सील कर दिए गए। प्रतिष्ठान मालिक पर दंगे के दौरान पत्थरबाजों को उकसाने के भी आरोप थे लेकिन दुकानों को सील करने के पीछे का कारण था बिरयानी में मिलाया जाने वाला प्रतिबंधित सिंथेटिक रंग जो मानव सेहत को नुकसान पहुंचाता है। इस मिलावट के लिए फूड सेफ्टी एक्ट की धारा 25/59 में तीन साल तक की सजा और पांच लाख रुपये तक का जुर्माना है।

वैसे सच कहूं तो यह सजा और जुर्माना दोनों ही जुर्म के मुकाबले बहुत कम है। घटिया और मिलावटी चीजें खा-खाकर देश के लोग अस्पतालों में भरे हुए हैं। तरह-तरह के ऐसे कैंसर फैल रहे हैं जिनके कारण डॉक्टरों को भी पता नहीं चल पा रहे। जाहिर है मिलावट, घटिया गुणवत्ता का खानपान प्लास्टिक की पैकिंग और प्रदूषण इनका बड़ा कारण है। अब देखिए सिंगल यूज प्लास्टिक पर 1 जुलाई से प्रतिबंध लगा है। कानूनन एक लाख तक का जुर्माना और पांच साल तक की सजा हो सकती है। आप आसपड़ोस के बाजार में जाकर देख सकते हैं कि 19 तरह की जो प्लास्टिक सामग्री बैन की गई हैं, उनका अभी भी धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। सवाल उठता है कि जब सरकारों को पता होता है कि वह सख्त कानून बना रहे हैं तो उसका पालन करने में व्यवहारिक दिक्कतें क्या आएंगी, उन पर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता। अब नारियल पानी वाला प्लास्टिक के स्ट्रॉ की जगह दूसरे विकल्पों पर जाए तो उसकी लागत पांच गुना बढ़ती है। आम के ठेले वाला अगर कागज के लिफाफे में दो किलो आम दे तो वह तुरंत फट जाएगा। फिर फैक्ट्रियों को सीज करने में हमेशा से ढिलाई है। सरकार के ही मुताबिक हर साल करीब पैंतीस लाख टन प्लास्टिक कचरा हमारे देश में निकल रहा है।

इसके खतरों से सारी दुनिया वाकिफ है। सरकारों की चिंता भी कानून के जरिए दिखाई पड़ रही है। बस वो रस्म निभाने वाली नहीं होनी चाहिए। हाल तो यह है कि अभी गरम खाने की पैकेजिंग तक प्लास्टिक में की जा रही है। होम डिलिवरी में काले और रंगीन प्लास्टिक पैकों में दाल, सब्जी और बिरयानी आती है, लोग खाते हैं। जबकि यह सेहत को नुकसान करने वाला है। जब कानून है, प्रतिबन्ध तय हैं और लोगों को पता भी है कि कहां-कहां पर गड़बड़ियां हैं तो कार्रवाई क्यों नहीं होती।

देश भर में ज्यादातर राज्यों में होली, दिवाली और ऐसे ही त्योहारों के मौकों पर अचानक छापेमारी होती है। रस्मी तौर पर मिलावट के कुछ मामले पकड़े जाते हैं। यह कार्यवाही भी बेसन का लड्डू, दूध, खोया और सरसों तेल जैसी चीजों तक सीमित रहती है। बात जब बड़े कॉरपोरेट घरानों के फूड प्रोडक्ट की आती है तो मामला ज्यादातर ढीला पड़ जाता है। कुछ वक्त पहले बड़ी-बड़ी कंपनियों के शहद में मिलावट सिद्ध हुई थी। जिम्मेदार विभागों तक बात भी पहुंची पर एक्शन क्या लिया गया, यह पता नहीं चला। शहद जो कि दवा के तौर पर भी इस्तेमाल होता है, उसमें मिलावट होना गंभीर बात थी। इसी तरह पोल्ट्री फार्म के धंधे में मुर्गियों को जिंदा रखने के लिए बड़े पैमाने पर एंटी बायोटिक दवाएं दी जाती हैं। दुनिया के कई देशों में ऐसा किया जाना प्रतिबंधित है। जल्दी बढ़ने के लिए इन्हें स्टेरायड्स भी दिए जाते हैं। ऐसा चिकन खाने वालों में एंटी बायोटिक दवाओं का असर खत्म हो रहा है। रिसर्च में यह बात सामने आ चुकी हैं। इसके बावजूद मुर्गी पालन के तौर तरीकों को लोगों की सेहत को ध्यान में रखकर बदला नहीं जा रहा है। सबसे ज्यादा खाए जाने वाले समोसे और भटूरे एक ही तेल में बार-बार तले जाते हैं। तेल का रंग बदल जाता है, गंध चली जाती है और उसमें ऐसे तत्व आ जाते हैं जो मनुष्यों में गंभीर बीमारी पैदा करते हैं। सब खुलेआम चलता है और कुछ नहीं बदलता।

प्लास्टिक का इस्तेमाल रोकने की तरह इसके लिए भी कानून है पर इस्तेमाल ठीक से नहीं हो रहा। वजह यह भी है कि अगर ज्यादा सैंपल लिए जाने लगेंगे तो उन्हें जांचने के लिए लैब और लैब एक्सपर्ट हमारे पास नहीं हैं। सब्जियों और फसलों में कितना कीटनाशक खतरनाक हद तक पहुंच गया है, यह तो देखा ही नहीं जाता। खाने वालों को भी इस बात से फर्क नहीं पड़ रहा कि आखिर वह खा क्या रहे हैं। सस्ता, बिना बनाए घर में डिलिवरी हो जाने वाला और जुबान पर चटखारे देने वाला सेहत को कैसे नुकसान पहुंचा रहा है, इसे तो हमें आपको समझना ही होगा। सेहत सही रखनी है तो चेक करिए कि क्या खा रहे हैं, गड़बड़ी दिख रही है तो शिकायत करिए, आपका हक है। सोशल मीडिया पर बहस करनी है तो ऐसे विषयों पर करिए क्योंकि इससे आप और आप के बच्चों का जीवन जुड़ा है। बहरहाल मिलावट रोकने के पूरे सिस्टम के लिए जिगर मुरादाबादी का यह शेर और बात खत्म कि-

ये मय-ख़ाना है बज़्म-ए-जम नहीं है
यहाँ कोई किसी से कम नहीं है


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